Monday, October 11, 2010

आज पढने के बदले सुन लें कहानी...."कशमकश"

कुछ कहानियाँ ज़ेहन में चल रही हैं...बस उन्हें शब्दों में ढालने का समय नहीं मिल पा रहा....पर ये कहानी भी आप सबों के लिए नई ही होगी...यह मेरे ब्लॉग की पहली पोस्ट थी और इसे मैने आकशवाणी के लिए भी पढ़ा था. उसी की रेकॉर्डिंग निम्न लिंक पर सुन सकते हैं. समय सीमा के कारण रेडियो  के लिए कुछ एडिट करना पड़ा.

 

 चाहें तो सुन ले...या फिर इस लिंक पर पूरी कहानी पढ़ सकते हैं.
http://mankapakhi.blogspot.com/2009/09/blog-post.html      

24 comments:

रश्मि प्रभा... said...

are waah rashmi ji ...... kahani sunane ka itna khoobsurat andaaj, bas sun rahi hun - shukriyaa, kahani ko yun sunane ke liye

rashmi ravija said...

@रश्मि प्रभा जी,
अब आप मुझे "जी " तो ना कहें प्लीज्ज़
आपको अच्छा लगा सुनना ...शुक्रिया :)

डॉ टी एस दराल said...

वाह रश्मि जी । आज आपने सही काम पर लगाया है हमें ।
खैर सुनने में ध्यान लगाते हैं ।

rashmi ravija said...

शुक्रिया दराल जी,
पर सुनने के बाद बताना था,ना..कि कैसा लगा :)

डॉ टी एस दराल said...

गरीबी और बेरोज़गारी से जूझते एक परिवार की मार्मिक व्यथा ब्यान की है आपने । लाखों आम परिवारों की कहानी । परन्तु अंत दुखद रहा ।

आपकी आवाज़ स्वच्छ , निर्मल , और अत्यंत मधुर लगी ।
आभार इस सुन्दर प्रस्तुति के लिए ।

shikha varshney said...

मुझे कहानी पढ़ना ज्यादा अच्छा लगता है ..तो पढ़ के आ रही हूँ .
जीवन कि कठिनाइयों का मार्मिक वर्णन है पर अंत दुखांत :(.

kshama said...

Abhi kahani padhani hai...sunneki yahan pe suvidha nahi! Mai out of stn hun...padhke commment karti hun!
Janti hun,achheehee hogi!

समयचक्र said...

कहानी सुनकर बहुत अच्छा लगा.... बढ़िया प्रस्तुति....

रचना दीक्षित said...

क्या बात है !!!!!
सच बहुत ही अच्छी लगी कहानी. न जाने और कितनी नीलू ऐसे ही उंगली में स्याही की जगह राख लगाये अपने माँ बाप और भाइयों का पेट पाल रही हैं

abhi said...

ओह्ह...जान निकल गयी इस पोस्ट पे तो...आखरी वाला सीन अभी तक आखों में घूम रहा है "नौकरी का जोवाईनींग डेट बीत गया.."और ठीक वहीँ पे आपकी कहानी खत्म...ओफ्ह्ह...क़त्ल कर दिया...इतना मार्मिक....

प्रवीण पाण्डेय said...

आपकी आवाज में सुनना बहुत अच्छा लगा। अब केवल भावपूर्ण पाठ ही करें। करुण कहानी।

सतीश पंचम said...

इस कहानी को मैं पहले भी पढ़ चुका हूँ। पढ़ने का कारण यह था कि जब एक साल पहले मुंबई ब्लॉगर बैठकी बोरिवली नेशनल पार्क में आयोजित हुई थी तब मैने उत्सुकता वश वहां आने वाले ब्लॉगरों को जानना चाहा था कि वह क्या लिखते हैं, कैसे लिखते हैं....क्या विचार हैं वगैरह वगैरह। और मैने उसी दौरान आपकी बाकी पोस्टों के साथ साथ इस कहानी को भी पढ़ा था।

कहानी बहुत ही अलग किस्म का भाव लिए है। यह परिस्थितियां अक्सर कहीं न कहीं आ ही जाती हैं जीवन में चाहे किसी रूप में आएं लेकिन आती जरूर हैं।

अभी अभी सामने केबीसी में देखा कि मध्य प्रदेश का कंटेस्टेंट आई ए एस बनना चाहता था और घर की परिस्थितियों के चलते, गरीबी के चलते आगे नहीं पढ़ पाया। परिस्थितियों को देखते हुए उसने किराने की दुकान खोली और अभी केबीसी में उसने बताया कि जो कुछ यहां से कमाएगा सब छोटे भाई के लिए है जो कि बीई कर रहा है।

Shubham Jain said...

Di, aapko sunana bahut achcha laga...lekin ye kahani padhne me jayada ahchci lagi :)

वन्दना अवस्थी दुबे said...

जब ये कहानी पढी थी, तब भी अच्छी लगी थी, और आज सुन के भी मज़ा आया.

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

कहानी बहुत अच्छी लगी ...और कहानी सुनने का तरीका भी बढ़िया ...सुनने और पढ़ने में काफी अंतर होता है ...लेकिन स्पष्ट वाचन बहुत अच्छा लगा ..कहानी भी बेहद अच्छी

Udan Tashtari said...

ओह!! ज्वाईंग डेट बीत गई...बहुत दुख हुआ...ऐसा अंत देख.

-सुन्दरता से भावपूर्ण पठन किया है..कहानी बहुत अच्छी लगी. बधाई.

Smart Indian said...

कहानी वास्तविकता के करीब है - प्रभावी वाचन!

seema gupta said...

आपको सुनना एक सुखद अनुभव रहा, दुखद अंत ने मन को दुखी भी किया..

regards

रंजू भाटिया said...

bahut badhiya ...yah tareeka adhik pasnd aaya rashmi .

वाणी गीत said...

बेरोजगारी एक बहुत बड़ा दुःख है ...खुद उस व्यक्ति के लिए और उसके आसपास रहने वालों के लिए ...
सिर्फ पढ़ पाई हूँ ..सुनकर बता पाउंगी कि तुम्हारी आवाज़ में सुनना कैसा लगा ...!

दीपक 'मशाल' said...

गरीबी... बेरोजगारी... यूँ तो अपने देश में क़दम-क़दम पर देखने को मिल जाती है लेकिन फिर भी नियति ने अभिषेक के साथ जो खेल खेला वो सुनकर अंत में दिल बेचैन हो गया दी..

उम्मतें said...

लिखे पर टिप्पणी कर चुका हूं अब सुनकर हाजिरी दे रहा हूं !

निर्मला कपिला said...

कहानी सुनने का आनन्द ही कुछ और है। बहुत सुन्दर। बधाई।

जितेन्द्र ‘जौहर’ Jitendra Jauhar said...

"आँखें खुलीं थीं"
कहानी का यह उद्‌घाटक कथन ही एक जिज्ञासा उत्पन्न कर देता है मन में..!

आपका स्वर एकदम साफ़,प्रस्तुति ऐसी कि मानो कहानी से गहरा तादात्म्य बैठा लिया हो आपने।