कुछ कहानियाँ ज़ेहन में चल रही हैं...बस उन्हें शब्दों में ढालने का समय नहीं मिल पा रहा....पर ये कहानी भी आप सबों के लिए नई ही होगी...यह मेरे ब्लॉग की पहली पोस्ट थी और इसे मैने आकशवाणी के लिए भी पढ़ा था. उसी की रेकॉर्डिंग निम्न लिंक पर सुन सकते हैं. समय सीमा के कारण रेडियो के लिए कुछ एडिट करना पड़ा.
ओह्ह...जान निकल गयी इस पोस्ट पे तो...आखरी वाला सीन अभी तक आखों में घूम रहा है "नौकरी का जोवाईनींग डेट बीत गया.."और ठीक वहीँ पे आपकी कहानी खत्म...ओफ्ह्ह...क़त्ल कर दिया...इतना मार्मिक....
इस कहानी को मैं पहले भी पढ़ चुका हूँ। पढ़ने का कारण यह था कि जब एक साल पहले मुंबई ब्लॉगर बैठकी बोरिवली नेशनल पार्क में आयोजित हुई थी तब मैने उत्सुकता वश वहां आने वाले ब्लॉगरों को जानना चाहा था कि वह क्या लिखते हैं, कैसे लिखते हैं....क्या विचार हैं वगैरह वगैरह। और मैने उसी दौरान आपकी बाकी पोस्टों के साथ साथ इस कहानी को भी पढ़ा था।
कहानी बहुत ही अलग किस्म का भाव लिए है। यह परिस्थितियां अक्सर कहीं न कहीं आ ही जाती हैं जीवन में चाहे किसी रूप में आएं लेकिन आती जरूर हैं।
अभी अभी सामने केबीसी में देखा कि मध्य प्रदेश का कंटेस्टेंट आई ए एस बनना चाहता था और घर की परिस्थितियों के चलते, गरीबी के चलते आगे नहीं पढ़ पाया। परिस्थितियों को देखते हुए उसने किराने की दुकान खोली और अभी केबीसी में उसने बताया कि जो कुछ यहां से कमाएगा सब छोटे भाई के लिए है जो कि बीई कर रहा है।
कहानी बहुत अच्छी लगी ...और कहानी सुनने का तरीका भी बढ़िया ...सुनने और पढ़ने में काफी अंतर होता है ...लेकिन स्पष्ट वाचन बहुत अच्छा लगा ..कहानी भी बेहद अच्छी
जीवन तो इंसान ही नहीं, बल्कि सभी जीव जीते हैं, लेकिन इस समाज में व्याप्त भ्रष्टाचार, मनमानी और भेदभावपूर्ण व्यवस्था के चलते कुछ लोगों के लिये मानव जीवन ही अभिशाप बन जाता है। अपना घर जेल से भी बुरी जगह बन जाता है। जिसके चलते अनेक लोग मजबूर होकर अपराधी भी बन जाते है। मैंने ऐसे लोगों को अपराधी बनते देखा है। मैंने अपराधी नहीं बनने का मार्ग चुना। मेरा निर्णय कितना सही या गलत था, ये तो पाठकों को तय करना है, लेकिन जो कुछ मैं पिछले तीन दशक से आज तक झेलता रहा हूँ, सह रहा हूँ और सहते रहने को विवश हूँ। उसके लिए कौन जिम्मेदार है? यह आप अर्थात समाज को तय करना है!
मैं यह जरूर जनता हूँ कि जब तक मुझ जैसे परिस्थितियों में फंसे समस्याग्रस्त लोगों को समाज के लोग अपने हाल पर छोडकर आगे बढते जायेंगे, समाज के हालात लगातार बिगडते ही जायेंगे। बल्कि हालात बिगडते जाने का यह भी एक बडा कारण है।
भगवान ना करे, लेकिन कल को आप या आपका कोई भी इस प्रकार के षडयन्त्र का कभी भी शिकार हो सकता है!
अत: यदि आपके पास केवल कुछ मिनट का समय हो तो कृपया मुझ "उम्र-कैदी" का निम्न ब्लॉग पढने का कष्ट करें हो सकता है कि आपके अनुभवों/विचारों से मुझे कोई दिशा मिल जाये या मेरा जीवन संघर्ष आपके या अन्य किसी के काम आ जाये! लेकिन मुझे दया या रहम या दिखावटी सहानुभूति की जरूरत नहीं है।
थोड़े से ज्ञान के आधार पर, यह ब्लॉग मैं खुद लिख रहा हूँ, इसे और अच्छा बनाने के लिए तथा अधिकतम पाठकों तक पहुँचाने के लिए तकनीकी जानकारी प्रदान करने वालों का आभारी रहूँगा।
http://umraquaidi.blogspot.com/
उक्त ब्लॉग पर आपकी एक सार्थक व मार्गदर्शक टिप्पणी की उम्मीद के साथ-आपका शुभचिन्तक “उम्र कैदी”
बेरोजगारी एक बहुत बड़ा दुःख है ...खुद उस व्यक्ति के लिए और उसके आसपास रहने वालों के लिए ... सिर्फ पढ़ पाई हूँ ..सुनकर बता पाउंगी कि तुम्हारी आवाज़ में सुनना कैसा लगा ...!
गरीबी... बेरोजगारी... यूँ तो अपने देश में क़दम-क़दम पर देखने को मिल जाती है लेकिन फिर भी नियति ने अभिषेक के साथ जो खेल खेला वो सुनकर अंत में दिल बेचैन हो गया दी..
25 comments:
are waah rashmi ji ...... kahani sunane ka itna khoobsurat andaaj, bas sun rahi hun - shukriyaa, kahani ko yun sunane ke liye
@रश्मि प्रभा जी,
अब आप मुझे "जी " तो ना कहें प्लीज्ज़
आपको अच्छा लगा सुनना ...शुक्रिया :)
वाह रश्मि जी । आज आपने सही काम पर लगाया है हमें ।
खैर सुनने में ध्यान लगाते हैं ।
शुक्रिया दराल जी,
पर सुनने के बाद बताना था,ना..कि कैसा लगा :)
गरीबी और बेरोज़गारी से जूझते एक परिवार की मार्मिक व्यथा ब्यान की है आपने । लाखों आम परिवारों की कहानी । परन्तु अंत दुखद रहा ।
आपकी आवाज़ स्वच्छ , निर्मल , और अत्यंत मधुर लगी ।
आभार इस सुन्दर प्रस्तुति के लिए ।
मुझे कहानी पढ़ना ज्यादा अच्छा लगता है ..तो पढ़ के आ रही हूँ .
जीवन कि कठिनाइयों का मार्मिक वर्णन है पर अंत दुखांत :(.
Abhi kahani padhani hai...sunneki yahan pe suvidha nahi! Mai out of stn hun...padhke commment karti hun!
Janti hun,achheehee hogi!
कहानी सुनकर बहुत अच्छा लगा.... बढ़िया प्रस्तुति....
क्या बात है !!!!!
सच बहुत ही अच्छी लगी कहानी. न जाने और कितनी नीलू ऐसे ही उंगली में स्याही की जगह राख लगाये अपने माँ बाप और भाइयों का पेट पाल रही हैं
ओह्ह...जान निकल गयी इस पोस्ट पे तो...आखरी वाला सीन अभी तक आखों में घूम रहा है "नौकरी का जोवाईनींग डेट बीत गया.."और ठीक वहीँ पे आपकी कहानी खत्म...ओफ्ह्ह...क़त्ल कर दिया...इतना मार्मिक....
आपकी आवाज में सुनना बहुत अच्छा लगा। अब केवल भावपूर्ण पाठ ही करें। करुण कहानी।
इस कहानी को मैं पहले भी पढ़ चुका हूँ। पढ़ने का कारण यह था कि जब एक साल पहले मुंबई ब्लॉगर बैठकी बोरिवली नेशनल पार्क में आयोजित हुई थी तब मैने उत्सुकता वश वहां आने वाले ब्लॉगरों को जानना चाहा था कि वह क्या लिखते हैं, कैसे लिखते हैं....क्या विचार हैं वगैरह वगैरह। और मैने उसी दौरान आपकी बाकी पोस्टों के साथ साथ इस कहानी को भी पढ़ा था।
कहानी बहुत ही अलग किस्म का भाव लिए है। यह परिस्थितियां अक्सर कहीं न कहीं आ ही जाती हैं जीवन में चाहे किसी रूप में आएं लेकिन आती जरूर हैं।
अभी अभी सामने केबीसी में देखा कि मध्य प्रदेश का कंटेस्टेंट आई ए एस बनना चाहता था और घर की परिस्थितियों के चलते, गरीबी के चलते आगे नहीं पढ़ पाया। परिस्थितियों को देखते हुए उसने किराने की दुकान खोली और अभी केबीसी में उसने बताया कि जो कुछ यहां से कमाएगा सब छोटे भाई के लिए है जो कि बीई कर रहा है।
Di, aapko sunana bahut achcha laga...lekin ye kahani padhne me jayada ahchci lagi :)
जब ये कहानी पढी थी, तब भी अच्छी लगी थी, और आज सुन के भी मज़ा आया.
कहानी बहुत अच्छी लगी ...और कहानी सुनने का तरीका भी बढ़िया ...सुनने और पढ़ने में काफी अंतर होता है ...लेकिन स्पष्ट वाचन बहुत अच्छा लगा ..कहानी भी बेहद अच्छी
ओह!! ज्वाईंग डेट बीत गई...बहुत दुख हुआ...ऐसा अंत देख.
-सुन्दरता से भावपूर्ण पठन किया है..कहानी बहुत अच्छी लगी. बधाई.
कहानी वास्तविकता के करीब है - प्रभावी वाचन!
आपको सुनना एक सुखद अनुभव रहा, दुखद अंत ने मन को दुखी भी किया..
regards
लेखन के लिये “उम्र कैदी” की ओर से शुभकामनाएँ।
जीवन तो इंसान ही नहीं, बल्कि सभी जीव जीते हैं, लेकिन इस समाज में व्याप्त भ्रष्टाचार, मनमानी और भेदभावपूर्ण व्यवस्था के चलते कुछ लोगों के लिये मानव जीवन ही अभिशाप बन जाता है। अपना घर जेल से भी बुरी जगह बन जाता है। जिसके चलते अनेक लोग मजबूर होकर अपराधी भी बन जाते है। मैंने ऐसे लोगों को अपराधी बनते देखा है। मैंने अपराधी नहीं बनने का मार्ग चुना। मेरा निर्णय कितना सही या गलत था, ये तो पाठकों को तय करना है, लेकिन जो कुछ मैं पिछले तीन दशक से आज तक झेलता रहा हूँ, सह रहा हूँ और सहते रहने को विवश हूँ। उसके लिए कौन जिम्मेदार है? यह आप अर्थात समाज को तय करना है!
मैं यह जरूर जनता हूँ कि जब तक मुझ जैसे परिस्थितियों में फंसे समस्याग्रस्त लोगों को समाज के लोग अपने हाल पर छोडकर आगे बढते जायेंगे, समाज के हालात लगातार बिगडते ही जायेंगे। बल्कि हालात बिगडते जाने का यह भी एक बडा कारण है।
भगवान ना करे, लेकिन कल को आप या आपका कोई भी इस प्रकार के षडयन्त्र का कभी भी शिकार हो सकता है!
अत: यदि आपके पास केवल कुछ मिनट का समय हो तो कृपया मुझ "उम्र-कैदी" का निम्न ब्लॉग पढने का कष्ट करें हो सकता है कि आपके अनुभवों/विचारों से मुझे कोई दिशा मिल जाये या मेरा जीवन संघर्ष आपके या अन्य किसी के काम आ जाये! लेकिन मुझे दया या रहम या दिखावटी सहानुभूति की जरूरत नहीं है।
थोड़े से ज्ञान के आधार पर, यह ब्लॉग मैं खुद लिख रहा हूँ, इसे और अच्छा बनाने के लिए तथा अधिकतम पाठकों तक पहुँचाने के लिए तकनीकी जानकारी प्रदान करने वालों का आभारी रहूँगा।
http://umraquaidi.blogspot.com/
उक्त ब्लॉग पर आपकी एक सार्थक व मार्गदर्शक टिप्पणी की उम्मीद के साथ-आपका शुभचिन्तक
“उम्र कैदी”
bahut badhiya ...yah tareeka adhik pasnd aaya rashmi .
बेरोजगारी एक बहुत बड़ा दुःख है ...खुद उस व्यक्ति के लिए और उसके आसपास रहने वालों के लिए ...
सिर्फ पढ़ पाई हूँ ..सुनकर बता पाउंगी कि तुम्हारी आवाज़ में सुनना कैसा लगा ...!
गरीबी... बेरोजगारी... यूँ तो अपने देश में क़दम-क़दम पर देखने को मिल जाती है लेकिन फिर भी नियति ने अभिषेक के साथ जो खेल खेला वो सुनकर अंत में दिल बेचैन हो गया दी..
लिखे पर टिप्पणी कर चुका हूं अब सुनकर हाजिरी दे रहा हूं !
कहानी सुनने का आनन्द ही कुछ और है। बहुत सुन्दर। बधाई।
"आँखें खुलीं थीं"
कहानी का यह उद्घाटक कथन ही एक जिज्ञासा उत्पन्न कर देता है मन में..!
आपका स्वर एकदम साफ़,प्रस्तुति ऐसी कि मानो कहानी से गहरा तादात्म्य बैठा लिया हो आपने।
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