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Sunday, November 15, 2009

खाली नहीं रहा कभी, यादों का ये मकान

चुनाव के दौरान हुए अनुभवों वाली पोस्ट के बाद ही यह पोस्ट लिखने वाली थी पर कुछ समसामयिक विषय सामने आ गए और लिखना टलता गया.मेरे पिताजी, अगर अपने कार्यकाल के दौरान हुए अपने अनुभवों को लिखें तो शायद एक ग्रन्थ तैयार हो जाए.किस्से तो मैंने भी कई सुने कि कैसे दंगों के दौरान पापा ने एक अलग सम्प्रदाय के लोगों को दो दिन तक घर में पनाह दी थी.वे लोग दो दिन तक पलंग के नीचे छुपे रहें.पलंग पर जमीन छूती चादर बिछी रहती.घर में आने जाने वाले लोगों को पता भी नहीं चलता कि कोई छुपा हुआ है.पापा घर में ताला बंद कर ऑफिस जाते.उनमे से एक को सिगरेट पीने कि आदत थी,उन्होंने रिस्क लेकर एक सिगरेट सुलगाई और बंद खिड़की की दरार से निकलती धुँए की लकीर देख, दंगाइयों ने पूरा घर घेर लिया था.शक तो उन्हें पहले से था ही.संयोग से पुलिस ने वक़्त पर आकर स्थिति संभाल ली.ऐसे ही एक बार दंगे में पापा की पूरी शर्ट खून से रंग लाल हो गयी थी.भीड़ में से किसी ने घर पर खबर कर दी और घर पर रोना,धोना मच गया.बाद में पापा की खैरियत देख सबको तसल्ली हुई.

हॉस्टल में रहने के कारण ,मैंने किस्से ही ज्यादा सुने पर एकाध बार मुझे भी ऐसी स्थितियों का सामना करना पड़ा.इस बार पापा की पोस्टिंग एक नक्सल बहुल क्षेत्र में थी.मेरे कॉलेज की छुट्टियाँ कुछ जल्दी हो गयी थीं,लिहाज़ा दोनों छोटे भाइयों के घर आने से पहले ही मैं घर आ गयी थी.फिर भी मैं बहुत खुश थी क्यूंकि इस बार,छुट्टियाँ बिताने,मेरे मामा की लड़की 'बबली' भी आई हुई थी. वी.सी.आर.पर कौन कौन सी फिल्मे देखनी हैं,किचेन में क्या क्या एक्सपेरिमेंट करने हैं...हमने सब प्लान कर लिया था.उसपर से हमारा मनोरंजन करने को एक नया नौकर ,जोगिन्दर भी था.जो फिल्मो और रामायण सीरियल का बहुत शौकीन था.जब भी हम बोर होते,कहते,"जोगिन्दर एक डायलॉग सुना." और वह पूरे रामलीला वाले स्टाईल में कहता--"और तब हनुमान ने रावण से कहा..."या फिर शोले के डायलॉग सुनाता.हम हंसते हंसते लोट पोट हो जाते पर वह अपने डायलॉग पूरा करके ही दम लेता.

दिन आशानुकूल बीत रहें थे,बस कभी कभी शाम को घर में कुछ बहस हो जाती.पास के शाहर के एक अधिकारी का मर्डर हो गया था.और पापा को उनका कार्यभार भी संभालने का निर्देश दिया गया था.घर वाले और सारे शुभेच्छु पापा को मना कर रहें थे पर पापा का कहना था, "ऐसे डर कर कैसे काम चलेगा.मुझे यहाँ के काम से फुरसत नहीं मिल रही वरना वहां का चार्ज तो लेना ही है."

एक दिन शाम को हमलोग 'चांदनी' फिल्म देख कर उठे.बबली किचेन में जोगिन्दर को 'स्पेशल चाय' बनाना सिखाने चली गयी.ममी भगवान को दीपक दिखा रही थीं.प्यून उस दिन की डाक दे गया था ,मैं वही देख रही थी (कभी हमारे भी ऐसे ठाठ थे). उन दिनों मेरी डाक ही ज्यादा आया करती थी.मैंने पत्र पत्रिकाओं में लिखना शुरू कर दिया था.'धर्मयुग','साप्ताहिक हिन्दुस्तान",'मनोरमा' 'रविवार' वगैरह में मेरी रचनाएं छपने लगी थी.लिहाजा ढेर सारे ख़त आते थे.मेरे ५ साल के लेखन काल में करीब ७५० ख़त मुझे मिले ,जबकि मैं नियमित नहीं लिखा करती थी.कभी कभी तो इन पत्रों से ही पता चलता कि मेरी कोई रचना छपी है.फिर पड़ोसियों के यहाँ ,पेपर वाले के यहाँ पत्रिका ढूंढनी शुरू होती.हालांकि ये इल्हाम मुझे था कि ये पत्र मेरे अच्छे लेखन की वजह से नहीं आ रहें.उन दिनों इंटरनेट की सुविधा तो थी नहीं.इसलिए लड़कियों से interact करने का सिर्फ एक तरीका था.किसी पत्रिका में तस्वीर और पता देख, ख़त लिख डालो.सारे पत्र शालीन हुआ करते थे,पर कुछ ख़त बड़े मजेदार होते थे.दो तीन ख़त तो सुदूर नाईजीरिया से भी आये थे..मैं किसी पत्र का जबाब नहीं देती थी पर हम सब मजे लेकर सारे ख़त पढ़ते थे.थोडा अपराधबोध भी रहता था क्यूंकि ममी पापा को लगता था मेरी पढाई पर असर पड़ेगा इसलिए वे मेरी लेखन को ज्यादा बढावा नहीं देते थे.

उन पत्रों में से एक पत्र था तो पापा के नाम पर मुझे लिखावट मेरे दादाजी की लगी,लिहाज़ा मैंने पत्र खोल लिया.पढ़कर तो मेरी चीख निकल गयी.ममी, बबली,जोगिन्दर सब भागते हुए आ गए.उस पूरे पत्र में पापा को अलग अलग तरह से धमकी दी गयी थी कि अगर उन्होंने 'अमुक' जगह का चार्ज लिया तो सर कलम कर दिया जायेगा..एक मर्डर वहां हो भी चुका था.हमारे तो प्राण कंठ में आ गए.पापा मीटिंग के लिए पटना गए हुए थे.जल्दी से जोगिन्दर को भेज 'प्यून' को बुलवाया गया.शायद वह कुछ बता सके.वो प्यून यूँ तो इतना तेज़ दिमाग था कि हमारे साथ यू.एस.ओपन देख देख कर लॉन टेनिस के सारे नियम जान गया था. बिलकुल सही जगह पर 'ओह' और 'वाह' कहता.पर अभी उस मूढ़मति ने बिना स्थिति की गंभीरता समझे कह डाला,"साहब तो कह रहें थे कि मीटिंग जल्दी ख़तम हो गयी तो वहां का चार्ज ले कर ही लौटेंगे." हम सबकी तो जैसे सांस रुक गयी. पर पापा का इंतज़ार करने के सिवा कोई और चारा नहीं था.सो चिंता से भरे हम सब सड़क पर टकटकी लगाए,बरामदे में ही बैठ गए.तभी जैसे सीन को कम्लीट करते हुए बारिश शुरू हो गयी.बारिश हमेशा से मुझे बहुत पसंद है पर आज तो लगा जैसे पट पट पड़ती बारिश कि बूँदें हमारी हालत देख ताली बजा रही हैं.बिजली की चमक भी मुहँ चिढाती हुई सी प्रतीत हुई. बारिश शुरू होते ही बिजली विभाग द्वारा बिजली काट दी जाती थी ताकि कहीं कोई तार टूटने से कोई दुर्घटना ना हो जाए.बिलकुल किसी हॉरर फिल्म से लिया गया दृश्य लग रहा था.....कमरे में हवा के थपेडों से लड़ता धीमा धीमा जलता लैंप,अँधेरे में बैठे डरे सहमे लोग और बाहर होती घनघोर बारिश.तभी दूर से एक तेज़ रौशनी दिखाई दी.पास आने पर देखा कोई ५ सेल की टॉर्च लिए सायकल पे सवार हमारे घर की तरफ ही आ रहा है.हमारी जान सूख गयी.पर जब वह हमारा गेट पारकर चला गया तो हमारी रुकी सांस लौटी.

दूर से पापा की जीप की हेडलाईट दिखी और हमने राहत की सांस ली.ममी ने कहा,"तुंरत कुछ मत कहना, हाथ पैर धोकर. खाना खा लें,तब बताएँगे" पर पापा ने जीप से उतरते ही ड्राइवर को हिदायत दी,"कल सुबह जरा जल्दी आना.पहले मैं वहां का चार्ज लेकर आऊंगा तभी अपने ऑफिस का काम शुरू करूँगा."ममी जैसे चिल्ला ही पड़ीं,"नहीं, वहां बिलकुल नहीं जाना है" फिर पापा को पत्र दिया गया.सबसे पहले हम लड़कियों पर नज़र पड़ी.इन्हें यहाँ से हटाना होगा.पटना में मेरे छोटे मामा का घर खाली पड़ा था.मामा छः महीने के लिए बाहर गए हुए थे और मामी अपने मायके में थीं.हमें आदेश मिला,"अपना अपना सामान संभाल लो,सुबह ड्राइवर मामा के घर छोड़ आएगा"
खाना वाना खाते, बातचीत करते रात के बारह बज गए,तब जाकर मैंने और बबली ने अपनी चीज़ें इकट्ठी करनी शुरू कीं.बिस्तर पर दोनों अटैचियाँ खोले हम अपना अपना सामान जमा रहें थे कि हमारी नज़र नेलपौलिश पर पड़ी.हमने तय किया नेलपौलिश लगाते हैं.रात के दो बज रहें थे तब.ममी हमारी खुसपुस सुन कमरे में हमें देखने आयीं.(ये ममी लोगों की एंट्री हमेशा गलत वक़्त पर ही क्यूँ होती है??) हमें नेलपौलिश लगाते देख जम कर डांट पड़ी.और हम बेचारे अपनी अपनी दसों उंगलियाँ फैलाए डांट सुनते रहें.क्यूंकि झट से किसी काम में उलझने का बहाना भी नहीं कर सकते थे.नेलपौलिश खराब हो जाती.

सुबह सुबह मैं और बबली,पटना के लिए रवाना हो गए.पता नहीं,स्थिति की गंभीरता हम पर तारी थी या अकेले सफ़र करने का हमारा ये पहला अनुभव था.ढाई घंटे के सफ़र में हम दोनों, ना तो एक शब्द बोले,ना ही हँसे.जबकि आज भी हम फ़ोन पर बात करते हैं तो दोनों के घरवालों को पूछने की जरूरत नहीं होती कि दूसरी तरफ कौन है?,ना तो हमारी हंसी ख़तम होती है,ना बातें.
ड्राईवर हमें घर के बाहर छोड़ कर ही चला गया,दोपहर तक ममी को भी आना था.पड़ोस से चाभी लेकर जब हमने घर खोला,तो हमारे आंसू आ गए.घर इतना गन्दा था कि हम अपनी अटैची भी कहाँ रखें,समझ नहीं पा रहें थे.मामी के मायके जाने के बाद कुछ दिनों तक मामा अकेले थे और लगता था अपनी चंद दिनों की आज़ादी को उन्होंने भरपूर जिया था.सारी चीज़ें बिखरी पड़ी थीं.बिस्तर पर आधी खुली मसहरी,टेबल पर पड़े सिगरेट के टुकड़े,किचेन प्लेटफार्म पर टूटे हुए अंडे,जाने कब से अपने उठाये जाने की बाट जोह रहें थे.'जीवाश्म' क्या होता है,पहली बार प्रैक्टिकली जाना.डब्बे में एक रोटी पड़ी थी.जैसे ही फेंकने को उठाया,पाया वह राख हो चुकी थी.

मैंने और बबली ने एक दूसरे को देखा और आँखों आँखों में ही समझ गए,सारी सफाई हमें ही करनी पड़ेगी.कपड़े बदल हम सफाई में जुट गए.बस बीच बीच में एक 'लाफ्टर ब्रेक' ले लेते.कभी बबली मुझे धूल धूसरित,सर पर कपडा बांधे, लम्बा सा झाडू लिए जाले साफ़ करते देख,हंसी से लोट पोट हो जाती तो कभी मैं उसे पसीने से लथपथ,टोकरी में ढेर सारा बर्तन जमा कर , मांजते देख हंस पड़ती.कभी हम,डांट सुनते हुए लगाई गयी अपनी लैक्मे की नेलपौलिश की दुर्गति देख समझ नहीं पाते,हँसे या रोएँ.
दो तीन घंटे में हमने घर को शीशे सा चमका दिया और नहा धोकर ममी की राह देखने लगे.अब हमें जबरदस्त भूख लग आई थी.किचेन में डब्बे टटोलने शुरू किये तो एक फ्रूट जूस का टिन मिला. टिनक़टर तो था नहीं,किसी तरह कील और हथौडी के सहारे उसे खोलने की कोशिश में लगे.मेरा हाथ भी कट गया पर डब्बा खोलने में कामयाबी मिल गयी.बबली ताजे धुले कांच के ग्लास ले आई.हमने इश्टाईल से चीयर्स कहा और एक एक घूँट लिया.फिर एक दूसरे की तरफ देखा और वॉश बेसिन की तरफ भागे.जूस खराब हो चुका था.वापस किचेन में एक एक डब्बे खोल कर देखने शुरू किये.एक डब्बे में मिल्क पाउडर मिला.डरते डरते एक चुटकी जुबान पर रखा,पर नहीं मिल्क पाउडर खराब नहीं हुआ था.फिर तो हम चम्मच भर भर कर मिल्क पाउडर खाते रहें,और बातों का खजाना तो हमारे पास था ही.सो वक़्त कटता रहा..
वहां का काम समेटते ममी को आने में शाम हो गयी.हमने उन्हें घर के अन्दर नहीं आने दिया.फरमाईश की,पहले हमारे लिए,समोसे,रसगुल्ले,कचौरियां लेकर आओ,फिर एंट्री मिलेगी.