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Monday, December 28, 2009

वे क्षण, जो जीने का सबब बन जाते हैं

इस बार जन्मदिन पर कई सरप्राइज़ मिले...मैंने अपने प्रोफाइल पर जन्मदिन नहीं लिखा है,लिहाज़ा मुझे लगा यहाँ तो किसी को पता नहीं होगा...पर किसी नेक दिल मित्र ने लगता है पाबला जी को खबर कर दी...और उन्होंने 'ब्लॉगर्स जन्मदिन' वाले ब्लॉग पर यह खबर डाल दी और शुरू हो गया बधाइयों का तांता...कुछ लोगों ने ई.मेल का माध्यम चुना,शुभकामनाएं भेजने का...सबलोगों को कोटिशः धन्यवाद..

ख़ुशी हुई देख...बरसों पहले शुरू हुआ यह सरप्राइज़ का सिलसिला अबतक जारी है...बचपन में जन्मदिन के दिन हम सुबह सुबह नए कपड़े पहन, मंदिर जाते थे और हमारी पसंद का खाना बनता था. शायद नौ-दस बरस की थी, तब की बात है..जन्मदिन वाले दिन,शाम को बाहर खेल रही थी..नौकर ने आकर बोला,ममी ने सारे बच्चों के साथ बुलाया है...अबूझ से सब अन्दर गए तो नमकीन और मिठाइयां मिलीं. लेकिन हमारे साथ खेलने वाली 'नईमा' घर के अन्दर आने को तैयार नहीं थी...जबरदस्ती अन्दर लेकर आई पर वह कुछ खाने को तैयार नहीं...बड़ी मुश्किल से मनाया था,उसे खाने को. पर उस कच्ची उम्र में ही मुझे आभास हो गया था कि 'नईमा' का हर घर में यूँ खुले दिल से स्वागत नहीं होता.

एक बार अपने मामा की शादी में हम सब इकट्ठे हुए थे..मेरा जन्मदिन भी उन्ही दिनों पड़ा और सारे छोटे भाई-बहनों ने मिलकर डांस-म्युज़िक-ड्रामा का एक सुन्दर प्रोग्राम पेश किया था...बस मैं थोड़ी अकेली पड़ गयी थी, उस दिन...जहाँ भी जाती, मुझे भगा दिया जाता.."हमलोग रिहर्सल कर रहें हैं,तुम यहाँ से जाओ .तुम्हारे लिए सरप्राइज़ है"..(उस प्रोग्राम की तस्वीर एक कजिन के औरकुट प्रोफाइल से चुरा ली है,उसके लिए भी सरप्राइज़ होगा,ये:))..आज उन भाई-बहनों में से कुछ की शादी हो गयी है..कुछ जिम्मेवारी वाले पद पर आसीन हैं....पर कितने मासूम लग रहें हैं....इन तस्वीरों में.


अपनी कॉलेज की सहेली सीमा को मैं अपने हर जन्मदिन पर याद कर लेती हूँ... ठंढ के दिनों में वह हमेशा खांसी-जुकाम से परेशान रहती पर इतनी ठंढ में भी इस दिन दो मोज़े,स्वेटर जैकेट,स्कार्फ पहने सी सी करती हुई...अमृता प्रीतम,निर्मल वर्मा या मोहन राकेश की किताबें लिए मुझे विश करने , दरवाजे पर सुबह सुबह हाज़िर हो जाती.

अभी कुछ साल पहले मेरे workaholic पति थोडा जल्दी आ गए थे.हम सब एक रेस्तरां में डिनर के लिए गए..वहाँ मॉकटेल में 'बर्थडे बैश' नामक एक पेय था.बच्चों ने तो 'मिकी माउस' ड्रिंक लिया..मेरे लिए 'बर्थडे बैश' ऑर्डर कर दिया.हम खाना ख़त्म कर डेज़र्ट का इंतज़ार कर रहें थे कि अचानक पूरा रेस्तरां.."हैप्पी बर्थडे सॉंग" से गूंजने लगा.और वेटर एक केक पर जलती हुई मोमबत्ती लेकर हमारी तरफ आया.मुझे पता ही नहीं चला कब उसने चुपके से आकर पूछ लिया था कि किसका बर्थडे है.सारे लोग हमारी मेज़ की तरफ देख रहें थे..मुझे तो बहुत ही एम्बैरेसिंग लगा.उसपर से पास वाली टेबल पर एक छोटी सी दो साल की लड़की ने शायद अभी अभी ;हैप्पी बर्थडे' कहना सीखा था...हर दो मिनट पर दौड़ कर आती और मुझे 'एपी बड्डे' कहकर चली जाती.अब जब कभी डिनर के लिए जाती हूँ..सबको पहले ताकीद कर देती हूँ...प्लीज़ डिस्क्लोज मत करना किसका बर्थडे है.

जाड़ा,गर्मी, बरसात हो या जन्मदिन , हमारी मॉर्निंग वाक कभी नहीं छूटती.सुबह की शुरुआत सहेलियों के साथ हँसते-बतियाते हुए करने से बेहतर और क्या होगा?...और उसपर से स्वास्थ्य भी सुधर जाए तो सोने पे सुहागा..३ साल पहले मैं मोर्निंग वाक से लौटी तो देखा,मेरा छोटा बेटा 'कनिष्क' कंप्यूटर पर बैठा है.मैंने जोरदार डांट लगाई,"ममी नहीं है तो सुबह सुबह गेम खेलना शुरू" वह चुपचाप उठकर चला गया.जब काम से निश्चिन्त हो,मैंने कम्प्यूटर खोला तो देखा,वाल पेपर पर रंग बिरंगे अक्षरों में लिखा है.."HAPPY BIRTHDAY MOM"

पिछले साल बड़े बेटे किंजल्क ने बिलकुल ही सरप्राइज़ कर दिया.25 दिसंबर की रात मैं थकी मांदी,सोफे पर, हाथ में एक किताब लिए ,घडी की सुईओं के 12 पर जाने का इंतज़ार कर रही थी.क्यूंकि मुझे पता था,मेरे साथ सुदूर शहरों में रजाइयों में दुबके कई लोग
भी उतनी ही बेसब्री से आधी रात का इंतज़ार कर रहें हैं...पता नहीं कब आँख लग गयी और अचानक तेज़ रौशनी और फुलझड़ी जैसी आवाज़ सुन मैं चौंक कर उठ बैठी(आजकल केक पर कैंडल की जगह उसके ही आकार की अनार जैसी फुलझड़ी लगाने का रिवाज चल पड़ा है)..डर कर इधर उधर देख ही रही थी कि देखा Three men in my life मुस्कुराते हुए 'हैप्पी बर्थडे बोल रहें हैं.किंजल्क की कोचिंग क्लास शाम सात बजे से रात दस बजे तक होती थी.लौटते वक़्त उसने केक लाया था और जितने कौशल से मैं इनके 'सैंटा क्लॉस' वाले गिफ्ट छुपाती थी वही सारे ट्रिक उसने मुझसे ये केक छुपाने में आजमा लिए थे...और तीनो जन सोने का बहाना कर जल्दी बिस्तर पर चले गए थे.

कभी कभी लगता है,ज़िन्दगी गोल गोल घूमती है और जहाँ से हमने शुरुआत की थी,वापस वहीँ पहुँच जाती है..हमारे मोर्निंग वाक के रास्ते में अयप्पा स्वामी का मंदिर है हर साल वहाँ २० से ३० दिसंबर तक भव्य पूजा समारोह होता है.सुन्दर फूलों से पंडाल सजाया जाता है.पूरे दिन पूजा,अर्चना चलती रहती है..सुबह सुबह ही कई महिलायें नहा धोकर गीले बाल पीठ पर छितराए मलयालम में रामायण पढ़ती रहती हैं.मेरी सहेली राज़ी (जो मुंबई में पली बढ़ी है, पर मूलतः केरल की है.).ने कहा 'क्यूँ ना हमलोग भी सुबह सुबह नहा कर वाक करते हुए मंदिर में दर्शन को जाएँ,' मैंने और वैशाली (ये कर्नाटक की है) ने अनुमोदन किया और तीनो सहेलियों का
प्रातः भ्रमण के साथ मंदिर गमन भी शुरू हो गया ..मेरा जन्मदिन बीच में पड़ता है,सो अब बचपन में जन्मदिन वाले दिन सुबह सुबह मंदिर जाने के दिन फिर से लौट आए हैं. वैसे मुझे और वैशाली को दर्शन के साथ साथ ,प्रसाद के रूप में मिलने वाले गरम गरम स्वादिष्ट पायसम का कम आकर्षण नहीं रहता.

(इस बार के जन्मदिन पर इतने सारे सरप्राइज़ मिले
की उसकी चर्चा अगले पोस्ट में)