tag:blogger.com,1999:blog-6953374982088960088.post7106346523588307288..comments2023-09-10T07:58:02.211-07:00Comments on मन का पाखी: आँखों का अनकहा सचrashmi ravijahttp://www.blogger.com/profile/04858127136023935113noreply@blogger.comBlogger51125tag:blogger.com,1999:blog-6953374982088960088.post-6291446343949137642012-04-23T02:00:02.959-07:002012-04-23T02:00:02.959-07:00कल 24/04/2012 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल (व...<i><b> कल 24/04/2012 को आपकी यह पोस्ट <a href="http://nayi-purani-halchal.blogspot.in" rel="nofollow"> नयी पुरानी हलचल (विभा रानी श्रीवास्तव जी की प्रस्तुति में) </a> पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .<br />धन्यवाद! </b></i>Yashwant R. B. Mathurhttps://www.blogger.com/profile/06997216769306922306noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6953374982088960088.post-87982483983292442572011-03-23T01:15:00.570-07:002011-03-23T01:15:00.570-07:00आपने रुला दिया..गले में कुछ भारी सा अटक गया..आसूँ ...आपने रुला दिया..गले में कुछ भारी सा अटक गया..आसूँ बस अटके हैं.... जाने क्यों शालिनी की बजाए मुझे मानस से मोह हो गया...<br /> इसलिए तो मानती हूँ कि ...प्यार या प्रेम पीड़ा का दूसरा नाम है...वन्दना ने तो जैसे मेरे दिल की ही बात कर दी हो ...दूसरी तरफ अली साहब की टिप्पणी ने तो बहुत कुछ सोचने पर विवश कर दिया..बहुत बारीकी से उन्हों ने दो मुख्य पात्रों का चरित्र चित्रण किया है...मीनाक्षीhttps://www.blogger.com/profile/06278779055250811255noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6953374982088960088.post-15831407801426593632011-01-12T07:34:08.923-08:002011-01-12T07:34:08.923-08:00बहुत अच्छा लगा परन्तु आज रात भर सोचते ही रहेंगे.बहुत अच्छा लगा परन्तु आज रात भर सोचते ही रहेंगे.P.N. Subramanianhttps://www.blogger.com/profile/01420464521174227821noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6953374982088960088.post-12539509285250042372010-09-22T12:55:09.840-07:002010-09-22T12:55:09.840-07:00कहानी पढ़ना बहुत मजेदार अनुभव रहा।
उत्साही जी की ...कहानी पढ़ना बहुत मजेदार अनुभव रहा। <br /><br />उत्साही जी की अपनी सोच हो सकती है। लेकिन ज्यादातर प्रेम-कहानियां में किस्से संयोग-वियोग के ही तो होते हैं। <br /><br />कहने को तो कोई यह भी कह सकता है कि ऐसे भी क्या बेवकूफ़ प्रेमी हैं कि उनको एक-दूसरे के प्रेम के बारे में इत्ती देर से पता चला। लेकिन इस कहानी के समर्थन में यह शेर भी है:<br /><br /><b>ये तो नफ़रत है जिसे लम्हों में दुनिया जान लेती है,<br />मोहब्बत का पता चलते जमाने बीत जाते हैं।</b><br /><br />संयोग से इस कहानी की शुरुआत में <b>उसकी तो सारी इन्द्रियाँ सिमट कर बस कान बन गए हैं</b> पढ़कर पांच साल पहले लिखी <a href="http://bunokahani.blogspot.com/2005/01/blog-post_21.html" rel="nofollow">इस कहानी</a> का वाक्य <b>उसका पूरा शरीर कान हो गया</b> याद आ गया। कैसे अलग-अलग समय में एक सरीखे भाव आते हैं कहानीकारों के मन में।<br /><br />अच्छा लगा कहानी और पाठकों की प्रतिक्रियायें पढ़ना।अनूप शुक्लhttps://www.blogger.com/profile/07001026538357885879noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6953374982088960088.post-19043724719313426942010-09-19T20:22:55.723-07:002010-09-19T20:22:55.723-07:00interesting...from begining till endinteresting...from begining till endneelima garghttps://www.blogger.com/profile/07014867750280659771noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6953374982088960088.post-89109546586392249792010-09-18T03:04:33.199-07:002010-09-18T03:04:33.199-07:00हमारे आस-पड़ोस में, हॉस्टल लाइफ में, यहाँ तक कि दि...हमारे आस-पड़ोस में, हॉस्टल लाइफ में, यहाँ तक कि दिल्ली आकर आई.ए.एस. की तैयारी करने वालों के बीच में, ऐसी कई कहानियों को विषबेल से प्रेमांकुर में बदलते और फिर सूखकर मुरझाते देखा है. नब्बे प्रतिशत कहानियों का अंत दुखद होता है... जैसा हम सोचते हैं वैसा कहाँ होता है?..बचपन और किशोरावस्था की कहानियों का तो यही अंत स्वाभाविक है... हम कल्पनाओं में चाहे जितने प्रेमियों को मिलाते रहें क्योंकि उस उम्र में हममें साहस नहीं होता, अगर होता भी है तो कोई आधार नहीं होता. अगर बच्चों को थोड़ी स्वतंत्रता दी जाए, तो वे इस तरह अपने बचपन के प्रेमी को छोड़कर किसी अजनबी के साथ जीवन बिताने को अभिशप्त ना हों.<br />आपकी ये खासियत है कि आप बिना कोई प्रयास किये और बिना कोकिसी सैद्धांतिक बहस के, सहज रूप में नारी-विमर्श को अपनी कहानियों में ला देती हैं और मुझे आपकी यही विशेषता सबसे अधिक अच्छी लगती है, उदाहरण ये पंक्तियाँ---<br />- -"...पर हमें तो ,बिना चप्पल घिसे अच्छा लड़का मिल गया...हम तो गंगा नहा लिए."...माँ थीं.<br />---"किसने पूछा मानस??...हम लड़कियों से कभी पूछते हैं??....बता देते हैं,बस..कई बार तो तुरंत बताते भी नहीं...दूसरों से पता चलता है कि उनकी शादी ठीक हो गयी है...."<br />अली जी और उत्साही जी की बातें अपनी जगह पर सही हो सकती हैं क्योंकि एक ही चीज़ को देखने का सबका नजरिया होता है और स्त्री-पुरुष का नजरिया तो काफी अलग होता है.<br />मुझे कहानी बहुत स्वाभाविक लगी और अंत भी स्वाभाविक, आस-पड़ोस में घटी किसी आम सी घटना की तरह. इसकी ख़ूबसूरती भी इसके स्वाभाविक होने में है.muktihttps://www.blogger.com/profile/17129445463729732724noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6953374982088960088.post-2022947536015311442010-09-16T16:46:13.638-07:002010-09-16T16:46:13.638-07:00एक मुलाकात जरुरी थी या नहीं कुछ कह नहीं सकता। पर ज...एक मुलाकात जरुरी थी या नहीं कुछ कह नहीं सकता। पर जो है उसमें जी नहीं पाता इंसान औऱ जो छुट जाता है वो गीला मन वहीं रह जाता है। कैसे कहें क्या कहें। अस्सी साल की उम्र में भी पहचान जाता। आंखो की चमक और मुस्कान थोड़ी न बदल जानी है। यही तो अनकहा प्रेम है। कहानी और हकीकत एक जैसी होती है। पर लगा अगर मिलन हो जाता तो अपने को चैन मिल जाता। जाने क्यूं?Rohit Singhhttps://www.blogger.com/profile/09347426837251710317noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6953374982088960088.post-55874383455017274312010-09-16T00:14:54.959-07:002010-09-16T00:14:54.959-07:00कित्ती लम्बी कहानी...पर कित्ती अच्छी भी तो है.
__...कित्ती लम्बी कहानी...पर कित्ती अच्छी भी तो है. <br />_____________________________<br />'पाखी की दुनिया' - बच्चों के ब्लॉगस की चर्चा 'हिंदुस्तान' अख़बार में भी.Akshitaa (Pakhi)https://www.blogger.com/profile/06040970399010747427noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6953374982088960088.post-6946247340194229712010-09-13T03:09:14.005-07:002010-09-13T03:09:14.005-07:00फ़िलहाल खुद पे गुस्सा आ रहा है की इतनी देर क्यों क...फ़िलहाल खुद पे गुस्सा आ रहा है की इतनी देर क्यों की कहानी पढ़ने में.abhihttps://www.blogger.com/profile/12954157755191063152noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6953374982088960088.post-27851644883005612882010-09-13T03:08:40.013-07:002010-09-13T03:08:40.013-07:00विश्वास कीजिये कई जगह आंसू पोछने पड़े..
दिल में एक...विश्वास कीजिये कई जगह आंसू पोछने पड़े..<br />दिल में एक अजीब सा डर फिर से जाग गया, ऐसी कहानियों असल जिंदगी में बहुत पाएंगी आप, अभी भी ज़रा नज़रें घुमा के देख लीजिए, शायद मिल जाए..<br /><br />बिलकुल निशब्द हूँ अभी...कुछ कहने के हालत में नहीं, ऐसे ही कुछ देर किसी सोच में बैठे रहना चाहता हूँ, शुक्र है आज ऑफिस नहीं गया, घर पे ही हूँ वरना मुसीबत होतीabhihttps://www.blogger.com/profile/12954157755191063152noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6953374982088960088.post-6689389614493974812010-09-10T01:37:10.576-07:002010-09-10T01:37:10.576-07:00रश्मि जी आपकी यह कहानी पढ़ ली। एक पोस्ट में निपटा...रश्मि जी आपकी यह कहानी पढ़ ली। एक पोस्ट में निपटाने के चक्कर में लगता है आपने कहानी का कत्ल कर दिया। यह वह अंत तो नहीं है जो कहानी कहती है। कम से कम उनकी एक मुलाकात तो बनती ही थी। यहां तो आप पूरे अतीत में ही कहानी को चलाती हैं। किसी ने कहा है कि आपने कैरेक्टरों को मार डाला। मुझे भी लगता है। माफ करें,मैं भी कहानियां लिखता रहा हूं। इस अनुभव से कह रहा हूं कि कई बार जो पात्र हम गढ़ते हैं वे आपसे उनको लिखवाते हैं और कई बार हम उन्हें अपनी तरह से लिखते हैं। दोनों के बीच एक संतुलन रखना पड़ता है। यहां अंत में आपका कहानीकार शालिनी और मानस पर हावी हो गया। तो मैं तो यही कहूंगा कि दोनों प्रेमियों को आपने नहीं मिलवाकर प्रेम करने वालों पर बहुत अन्याय किया है। <br />बहरहाल कहानी की रवानी बहुत अच्छी है,जब तक चलती है सहजता से।राजेश उत्साहीhttps://www.blogger.com/profile/15973091178517874144noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6953374982088960088.post-5223524086510403532010-09-09T06:25:04.866-07:002010-09-09T06:25:04.866-07:00हम भारतीय अपने बच्चों के प्यार, आशा, अभिलाषा को कि...हम भारतीय अपने बच्चों के प्यार, आशा, अभिलाषा को कितनी बखूबी दफ़न कर देते हैं!<br />घुघूती बासूतीghughutibasutihttps://www.blogger.com/profile/06098260346298529829noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6953374982088960088.post-467689476387048662010-09-07T08:40:10.494-07:002010-09-07T08:40:10.494-07:00बहुत ही सुंदर कहानी । प्रेम वह चीज है जो नही मिलत...बहुत ही सुंदर कहानी । प्रेम वह चीज है जो नही मिलता तबी तक उसकी महत्ता रहती है । मिल जाये तो मिट्टी है खो जाये तो सोना है .Asha Joglekarhttps://www.blogger.com/profile/05351082141819705264noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6953374982088960088.post-11129433646883721452010-09-06T18:53:18.110-07:002010-09-06T18:53:18.110-07:00कहानी बहुत अच्छी है!
हिन्दी का प्रचार राष्ट्रीयता...कहानी बहुत अच्छी है!<br /><a rel="nofollow"> हिन्दी का प्रचार राष्ट्रीयता का प्रचार है। </a><br /><br /><a href="http://raj-bhasha-hindi.blogspot.com/2010/09/blog-post_07.html" rel="nofollow"> हिंदी और अर्थव्यवस्था, राजभाषा हिन्दी पर, पधारें</a>राजभाषा हिंदीhttps://www.blogger.com/profile/17968288638263284368noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6953374982088960088.post-33387406500164216882010-09-06T03:56:13.163-07:002010-09-06T03:56:13.163-07:00Very cute story,although a tragedy but very nice r...Very cute story,although a tragedy but very nice read.mamtahttps://www.blogger.com/profile/10767198205312070778noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6953374982088960088.post-60205514546700534052010-09-05T09:44:36.594-07:002010-09-05T09:44:36.594-07:00बहुत से रिश्ते अनखे रह जाते हैं बहुत ही अच्छी लगी ...बहुत से रिश्ते अनखे रह जाते हैं बहुत ही अच्छी लगी ये कहानी --- पहली सभी कहानियों से भी अच्छी। बधाई हो।निर्मला कपिलाhttps://www.blogger.com/profile/11155122415530356473noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6953374982088960088.post-37275691951219821192010-09-05T01:16:48.339-07:002010-09-05T01:16:48.339-07:00bahut sundar post badhaibahut sundar post badhaiजयकृष्ण राय तुषारhttps://www.blogger.com/profile/09427474313259230433noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6953374982088960088.post-12410521616712992722010-09-05T00:31:56.817-07:002010-09-05T00:31:56.817-07:00एक बार फिर आपकी इस सफल कहानी को पढ़ कर मन बहुत खुश...एक बार फिर आपकी इस सफल कहानी को पढ़ कर मन बहुत खुश हुआ...सब कुछ एक चलचित्र की तरह चलता जाता है आपकी कहानी में...कहीं कोई नीरवता नहीं कही किसी चरित्र के साथ कोई ढीलापन नहीं. यही आपकी लेखनी की सफलता और सार्थकता है.<br /><br />आप सफलता की ऊँचाइयों को छूए यही शुभकामना है.<br /><br />बधाई.अनामिका की सदायें ......https://www.blogger.com/profile/08628292381461467192noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6953374982088960088.post-55062003977273203372010-09-04T11:56:07.840-07:002010-09-04T11:56:07.840-07:00luv this story bt vahi baat hai na ki yahi chaht h...luv this story bt vahi baat hai na ki yahi chaht hoti hai ki hero-heroin mile tabhi har kaahni safal lagti hai, khair lekin iske baavjudd bhi kahani bahut pasand aai, apan to let-latif hain hi naa padhne aur tipiyaane ke mamle me, so der se hi sahi ji.Sanjeet Tripathihttps://www.blogger.com/profile/18362995980060168287noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6953374982088960088.post-28838643796048116302010-09-03T20:58:09.980-07:002010-09-03T20:58:09.980-07:00बहुत सुन्दर दिल को छूती कहानी , थोडा देर से पढ़ पाए...बहुत सुन्दर दिल को छूती कहानी , थोडा देर से पढ़ पाए इसलिए कमेन्ट भी देर से कर रहे हैं..Sarika Saxenahttps://www.blogger.com/profile/07060610260898563919noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6953374982088960088.post-29428448534889818112010-09-03T10:49:44.539-07:002010-09-03T10:49:44.539-07:00बहुत ही खूबसूरत कहानी है रश्मि जी ! मध्यमवर्गीय भा...बहुत ही खूबसूरत कहानी है रश्मि जी ! मध्यमवर्गीय भारतीय समाज के संकोची, शर्मीले, भीरू और भाग्यवादी युवाओं की मानसिकता का बहुत ही गहन और सूक्ष्म चरित्र चित्रण किया है ! कहानी का अंत बहुत स्वाभाविक और यथार्थवादी लगा ! जाने कितने लोगों ने इस कहानी में अपने जीवन के प्रतिबिम्ब ढूँढ लिए होंगे और अपनी उस एक पल की कायरता को कोसा होगा जब उन्होंने संकोच छोड़ ज़रा सी हिम्मत और साहस से काम लिया होता तो जीवन के मायने ही बदल गए होते ! इतनी बढ़िया कहानी लिखने के लिए और हम जैसे पाठकों तक पहुंचाने के लिए बहुत-बहुत बधाई एवं धन्यवाद !Sadhana Vaidhttps://www.blogger.com/profile/09242428126153386601noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6953374982088960088.post-77450916599146145262010-09-02T10:12:45.237-07:002010-09-02T10:12:45.237-07:00ओह्ह हम तो पूरी कहानी पढ़ने के बाद पूरे भीग चुके ह...ओह्ह हम तो पूरी कहानी पढ़ने के बाद पूरे भीग चुके हैं, और पता नहीं क्या क्या याद आ गया... ऐसा लगा कि .... शब्द ही नहीं मिल रहे हैं व्यक्त करने के लिये... क्षमा चाहता हूँ...<br /><br />बहुत ही बढ़िया कहानीविवेक रस्तोगीhttps://www.blogger.com/profile/01077993505906607655noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6953374982088960088.post-13654719223576624992010-09-01T12:46:20.542-07:002010-09-01T12:46:20.542-07:00सुबह ऑफिस में जल्दी जल्दी में पढ़ा था, अब थोड़ा आर...सुबह ऑफिस में जल्दी जल्दी में पढ़ा था, अब थोड़ा आराम से पढ़ा। <br /><br />कहानी का विश्लेषण अली जी ने काफी बढ़िया कर ही दिया है। <br /><br /> कई जगह काफी सुंदर नेरेशन है जैसे कि टॉयलेट के पास रूमाल बिछा कर उस पर बैठ कर आने का वर्णन ....जुससे कि कुछ कुछ मानस के भीतर उमड़ते घुमड़ते भावों को उसकी व्यग्रता को समझने के लिए कहानी में बहुत स्पेस बन जाता है।<br /><br /> <br /> शानदार कहानी है।सतीश पंचमhttps://www.blogger.com/profile/03801837503329198421noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6953374982088960088.post-87778644396466362502010-09-01T11:52:44.600-07:002010-09-01T11:52:44.600-07:00बहुत सुन्दर कहानी है. कुछ दृश्य तो इतने स्वाभाविक ...बहुत सुन्दर कहानी है. कुछ दृश्य तो इतने स्वाभाविक हैं, की भूल गयी, कहानी पढ़ रही हूँ-<br />"और फ़िर जैसे खुद को ही पहली बार जाना. सपने??...तो क्या, उसे मानस से कोई नराज़गी नहीं.पहले तो उसे बड़ा गुस्सा आता था, उस पर...हाँ आता तो था,पर....."<br />बहुत बड़ा सच..... <br />"पर उसे कहाँ पता था, वह तो परीक्षा की तैयारियों में उलझी है...घर वाले किसी और तैयारी में."<br />हमारे देश के मध्यमवर्गीय परिवारों में बेटियों कि यही विडम्बना है, आज भी. <br />"ना...वह कभी तैयार होती 'लड़की दिखाने को" दिमाग में क्या फितूर भरा हुआ है..बहुत पढना है....कम्पीटीशन देना है..ऑफिसर बनना है....पर हमें तो ,बिना चप्पल घिसे अच्छा <br />लड़का मिल गया...हम तो गंगा नहा लिए."<br />ऑफिसर बनने का हक़ तो केवल लड़कों का है न, और ऐसे सपने देखने का भी...लड़कियां यदि ऐसे सपने देखती हैं, तो फितूर ही कहलाते हैं.<br />"वो घड़े से पानी ले रही थी, मन हुआ ग्लास दे मारे घड़े पर और सारा पानी फ़ैल जाए,किचेन के साथ साथ उनके मंसूबों पर भी."<br />बहुत सुन्दर वाक्य विन्यास. <br />"पर कुछ नहीं कर सकी और अनजान बन वापस कमरे में लौट आई"<br />यही तो त्रासदी है, लड़कियों की.<br />"आशा भरी आँखों से उनलोगों की तरफ देखा, पर वे लोग खुद में ही मगन थीं..."अरे ये तो लाल कपड़े में बाँधा जाता है"...."सुपारी नहीं रखी?"..."पान के पत्ते भी चाहिए थे"..."क्या जीजी अभी तो आपने बेटी की शादी की है...और सब भूल गयीं " ...किसी का ध्यान उसकी तरफ नहीं था."<br />शादी वाले घर कि चहल-पहल का सुन्दर और सजीव चित्रण. दूल्हा-दुल्हन की तरफ ध्यान देता कौन है? <br />"वह उसकी आँखों का आग्रह समझ गया था. कैसे नहीं समझता ,'बचपन से बस आँखों की भाषा ही तो जानी है'"<br />क्या बात है. बलिहारी जाऊं.<br />"सब मशीनवत चलता रहा पर जब कन्यादान के समय उसे माता-पिता के बगल से उठा उस अजनबी के पास बिठाया जाने लगा तो जैसे अंदर कुछ जोर का दरक गया."<br />जिसका कन्यादान हो चुका हो, वही इतना सजीव और दिल "दरकाने" वाला वर्णन कर सकता है.<br /><br />अब शालिनी और मानस कि बातचीत-<br />ऐसे प्रेमी-युगल, जिनके बीच प्रेम भाव जताया ही न गया हो, के मध्य होने वाली सजीव और स्वाभाविक चर्चा. बिना किसी शिकवा-शिकायत के, बिना किसी दोषारोपण के.... आखिर कौन किस पर आरोप लगाता? बहुत बहुत सुन्दर.<br />कहानी का अंत भी बहुत शानदार है. शानदार कहानी पढवाने के लिए धन्यवादवन्दना अवस्थी दुबेhttps://www.blogger.com/profile/13048830323802336861noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6953374982088960088.post-89374306106250773532010-09-01T11:29:08.813-07:002010-09-01T11:29:08.813-07:00मानस और शालिनी के बच्चो वाली स्कूली नोंक झोंक को ...मानस और शालिनी के बच्चो वाली स्कूली नोंक झोंक को बहुत सूक्ष्मता से लिखा है एक लडके और लडकी के स्वाभाविक स्वभाव का सुन्दर चित्रण करती सुन्दर कहानी |<br /><br />kintu pyar ki kask और ahsas को varsho tak jinda rakha ja skta है कहानी का mool है ye |<br />एक achhi khani के liye बहुत बहुत badhai |शोभना चौरेhttps://www.blogger.com/profile/03043712108344046108noreply@blogger.com